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|कविता|

कविता आज इस दुनिया में जाने क्यों सभी परेशान हैं मन में हर तरह का उठ रहा एक हाहाकार हैक्यों ये मानव खुद में निश्छल नहीं रह पा रहा है क्यों वो जान बूझकर कर रहा दर्द का व्यापार है क्यों किसी के दर्द पर किसी की कटु मुस्कान है क्यों किसी कोमल हृदय को दे रहा चित्कार है...

| गहरे ज़ख्म – कविता |

गहरे ज़ख्म कुछ गहरे ज़ख्म कभी नहीं भरते तू गले से लगा ले तो शायद थोड़ा सा सुकून मिल जाए नहीं चाहिए मुझको कभी ज़माने भर की खुशियां तुमसे एक हाथ पकड़कर थाम लो हम गिरते हुए भी संभल जाएं मोहब्बत की आजमाइश की जरूरत ही क्यों पड़नी इश्क़ तो वो जो आंखों से होकर सीधे दिल तक...